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बधमानचम्पूः । एकस्मिन् दिवसे: कुण्डलपुरे दृप्तो गजराज पालानस्तम्भमुस्पाट्य गलशालातो बहिनिर्गतो हाहाकार परान विरचयन् प्रजाजनान् धेगा
भ्रामेसस्ततः प्रतोलीषु, रथ्यासु, च हट्टेषु । हाटकस्थानां पण्यानां राशि मस्तव्यस्तं विदधानोऽसौ करेणुराजो जनानां घेतांसि विशिष्ट विभीषकया समन्वितानि कुर्वन् यथेचछंचिकोड । संत्रस्ता भयविह्वला जनता स्वप्राणान् संरक्षित कन्दुकवादितस्ततो बभ्राम । जातं निखिलनगरे सदाभयस्याखाएं साम्राज्यं । एवं प्रजाजनान् पिलान् कुर्वन् परिणतो मदान्धः सगजस्तत्राभिमुखीभूय जगामयत्र श्रीवर्धमानकुमारोऽन्य डिम्भः सह पांसुक्रोडारत पासीत् । समवत्तिनमिव विकरालं तं गजेन्द्र स्वाभिमुखीभूयसमायान्तं संवीक्ष्य क्रीडारतास्तेऽपरे बालका मयभीताः सन्तस्तवा पलायन्ते स्म । परन्त्वचलितधेर्यो बलिष्ठानां धुरीणो वर्धमानकुमारोऽत्रस्तस्तं द्विपेन्द्र स्वनादध्वनित दिक्तरः केशरीव हेलयैव स भयंकरमपि
दूसरी घटना यह है कि एक दिन कुण्डलपुर नगर में अालान स्तम्भ को उखाड़कर एक मदोन्मत्त गजराज गजशाला से बाहर निकालकर उपद्रव करने लगा । गलियों में, बाजारों में उस समय हाहाकार मच गया। लोगों को भयभीत करता हुना वह हप्त गजराज बड़े बेग से इधर उधर फिरने लगा और बाजारों की दुकानों में जो विक्रेय वस्तुएँ रखी हुई थीं उन्हें अस्तव्यस्त करता हा वह मनुष्यों के चित्त को विशिष्ट रूप से भयभीत करने लगा और अपनी इच्छा के अनुसार क्रीडा करने में लीन हो गया। संत्रस्त जनता अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए गेंद की तरह इधर उधर भागने लगी। उस समय समस्त नगर में भय का अखण्ड साम्राज्य छा गया। इस प्रकार प्रजाजनों में भय का द्रतगति से संचार करता वह परिणत गजराज उस तरफ बढ़ा जहां वर्धमान अपने हमजोली बालकों के साथ क्रीडा करने में रत थे । यमराज के समान विकराल उस गजराज को अपनी मोर पाते देखकर क्रीडारत वे बालक तो भयभीत होकर वहां से इधर उधर भाग गये परन्तु प्रचलित धैर्यधारी वर्धमानकुमार निडर होकर वहीं पर डटे रहे। उन्होंने उसी समय ऐसी ध्वनि की जिससे समस्त दिगन्तराल वाचालित हो उठे। देखते देखते ही उन्होंने उस भयंकर