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वर्धमानचम्पूः
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प्रभातवाताहतिफम्पमाना लता च पुष्पाणि ववर्ष मोदात् । मनल केकाध्वनि लाञ्छनेन गीति जगे, वायरवो बभूव ॥ १०॥
धनस्तनेभ्यः पयसां प्रवाहो,
विनिर्गतस्तम्अनिहर्ष भावात् । शशाम तस्मिन् समये विरोधो,
विरोधिनां गोपरि जायमाने ॥११॥
अयोधिशतितमपार्श्वनाथस्य तीर्थंकरस्य पश्चात् पंचाशवधिक द्विशतवर्षेषु व्यतोतेषु सत्सु शिष्टामस प्राईम बार मानहाधिक पंचशत संवत्सरेषु बोरजन्मनोऽयं काल पासीत् ।
प्रातः काल की वायु से हिलती हुई लतानों ने हर्ष के भावेग से ही मानो नाच-नाच कर पुष्पों की वर्षा प्रारम्भ कर दी; एवं मयूर की ध्वनि के बहाने से ही मानो उन्होंने मंगल गीत गाये । वादित्रों ने भी अपनी ध्वनि सुनायी ॥ १०॥
गायों के स्तनों से दुग्ध का प्रवाह झरने लगा । प्रभु के जन्मजन्य हर्ष के कारण उस समय परस्पर विरोधी जीवों का विरोध भी शान्त हो गया ।।११।।
२३वें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ के बाद इन वीर-वर्धमानभगवान् का जन्म हुआ । पार्श्वनाथ के मोक्ष चले जाने पर २५० वर्ष का इनके जन्मकाल में विरहकाल रहा । अर्थात् २५० बर्ष जब निकल गये तब भगवान् वर्धमान का जन्म हुआ । उस समय ईस्वी सन्-संवत्सर-प्रारम्भ नहीं हुआ था। यह संवत्सर तो वीर भगवान् के जन्म के बाद प्रारम्भ हुआ है । अर्थात् वीर भगवान् के जन्म के बाद जब ५६६ वर्ष व्यतीत हो