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________________ ४१ १. अत्यधिक अध्ययन भी शरीर की क्लान्ति है । -- बाइबिल २. किताबें बुद्धि का कैदखाना है । अधिक किताबें पढ़ लेने पर स्वतन्त्र विचार करने की शक्ति गायब हो जाती है । अनन्तशास्त्र' बहुला च विद्या, अल्पश्चकालो बहुविघ्नता च । तदुपासनीय, यत्सारभूतं अधिक अध्ययन हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात् || पञ्चतंत्र कथामुख ६ शास्त्र अनन्त हैं, विद्याएं अनेक हैं, समय थोड़ा है और विघ्न बहुत हैं । अतः हंस की तरह पानी से दूधवत् शास्त्रों का सार तत्त्व ग्रहण करके उसकी उपासना में लग जाना चाहिए । ४. ग्रन्थमभ्यस्य मेधावी, ज्ञान-विज्ञानतत्त्वतः । पलालमिव धान्यार्थी त्यजेद् ग्रंथमशेषतः । - ब्रह्मबिन्दूपनिषद् ग्रन्थ को पढ़कर बुद्धिमानों को उसके तत्व रूप धान्य को ले लेना चाहिए एवं शेष पलालरूप ग्रंथ को छोड़ देना चाहिए । ५. स्थाणुरयं भारहार: किलाभूद्, अधीत्य वेदं न जानाति योऽर्थम् । - निक्क्त ११८ जो वेद को पढ़कर उसके अर्थ को नहीं जानता, वह बोझ से लवे हुए स्थाणु स्तंभ के समान है । ७७
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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