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१. अत्यधिक अध्ययन भी शरीर की क्लान्ति है ।
-- बाइबिल २. किताबें बुद्धि का कैदखाना है । अधिक किताबें पढ़ लेने पर स्वतन्त्र विचार करने की शक्ति गायब हो जाती है । अनन्तशास्त्र' बहुला च विद्या, अल्पश्चकालो बहुविघ्नता च । तदुपासनीय,
यत्सारभूतं
अधिक अध्ययन
हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात् ||
पञ्चतंत्र कथामुख ६
शास्त्र अनन्त हैं, विद्याएं अनेक हैं, समय थोड़ा है और विघ्न बहुत हैं । अतः हंस की तरह पानी से दूधवत् शास्त्रों का सार तत्त्व ग्रहण करके उसकी उपासना में लग जाना चाहिए । ४. ग्रन्थमभ्यस्य मेधावी, ज्ञान-विज्ञानतत्त्वतः ।
पलालमिव धान्यार्थी त्यजेद् ग्रंथमशेषतः ।
- ब्रह्मबिन्दूपनिषद् ग्रन्थ को पढ़कर बुद्धिमानों को उसके तत्व रूप धान्य को ले लेना चाहिए एवं शेष पलालरूप ग्रंथ को छोड़ देना चाहिए ।
५. स्थाणुरयं भारहार: किलाभूद्,
अधीत्य वेदं न जानाति योऽर्थम् ।
- निक्क्त ११८
जो वेद को पढ़कर उसके अर्थ को नहीं जानता, वह बोझ से लवे हुए स्थाणु स्तंभ के समान है ।
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