________________ 11 वास्तविक धन 1. यत्कर्मकरणेनान्तः संतोष लभने नरः / वस्तृतम्तद्धनं मन्ये, न धनं धनमुच्यते / / --रश्मिमाला 26 / 1 जिस काम के करने से मनुष्य की अन्तरात्मा को सन्तोष होता है, मैं वास्तव में उसीको धन मानता हूं, लौकिक वस्तु को घन नहीं कहा जाता। 2. पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जलमन्न मुभाषितम् / मूढ़: पाषाणखण्डेषुः रत्नसंज्ञा विधीयते / / -चाणक्यनीति 14 / 1 पृथ्वी में तीन रन है-जल, अन्न और सुभाषित / मुर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों -हीरा-पन्ना-माणिनः आदि को रत्न के नाम में पर्य हो गुकार