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________________ ૨૪ वक्तृस्वकला के बीज ४. ज्याँ लगे आतम तत्त्व चीन्ह्यो नहीं, त्यां लगे साधना सर्व झूठी । -- नरसी भगत ५. वद- रिणयमारिण घरंता सीलाणि तहां तवं च परमट्ठबाहिरा जे, शिध्वाणं ते ग - समयसार - १५३ भले ही व्रत नियम को धारण करें, तप और शील का आचरण करें, किन्तु जो परमार्थरूप आत्मबोध से शून्य है, वे कभी निर्माण को प्राप्त नहीं कर सकते 1 ६. आत्मज्ञानात् परं कार्य न बुद्धी धारयेच्चिरम् । 3 कुर्यादवशात किंचिद् वाक्कायाभ्यामतत्परः । कुव्वता । त्रिति ॥ -समाधिशतक ५० आत्मज्ञान के अतिरिक्त कोई भी कार्य का चिन्तन नहीं करना चाहिए, प्रयोजनयश कोई कार्य रहकर केवल वचन ही काया द्वारा करना चाहिए । ७. अगर मुझे अपनी फिलॉसफी कोई एक शब्द में कहने को कहे, तो मैं कहूंगा - 'आत्मनिर्भरता' - 'आत्मज्ञान' 1 5. दुक्खे गज्जद अप्पा | आत्मा बड़ी कठिनाई से जानी जाती है । ६. तस्मं तपो दमः कर्मेति प्रतिष्ठा । — रामतीर्थ - मोक्षपाहुड-६५ - केनोपनिषद्-४८ आत्मज्ञान की प्रतिष्ठा अर्थात् बुनियाद तीन बातों पर होती है--- पदम (इन्द्रियनिग्रह) तथा कर्म - सत्कर्म ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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