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वक्तृस्वकला के बीज
४. ज्याँ लगे आतम तत्त्व चीन्ह्यो नहीं, त्यां लगे साधना सर्व झूठी ।
-- नरसी भगत
५. वद- रिणयमारिण घरंता सीलाणि तहां तवं च परमट्ठबाहिरा जे, शिध्वाणं ते ग
- समयसार - १५३
भले ही व्रत नियम को धारण करें, तप और शील का आचरण करें, किन्तु जो परमार्थरूप आत्मबोध से शून्य है, वे कभी निर्माण को प्राप्त नहीं कर सकते 1
६. आत्मज्ञानात् परं कार्य न बुद्धी धारयेच्चिरम् ।
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कुर्यादवशात किंचिद् वाक्कायाभ्यामतत्परः ।
कुव्वता । त्रिति ॥
-समाधिशतक ५०
आत्मज्ञान के अतिरिक्त कोई भी कार्य का चिन्तन नहीं करना चाहिए, प्रयोजनयश कोई कार्य रहकर केवल वचन
ही
काया द्वारा करना चाहिए ।
७. अगर मुझे अपनी फिलॉसफी कोई एक शब्द में कहने को कहे, तो मैं कहूंगा - 'आत्मनिर्भरता' - 'आत्मज्ञान' 1
5. दुक्खे गज्जद अप्पा |
आत्मा बड़ी कठिनाई से जानी जाती है ।
६. तस्मं तपो दमः कर्मेति प्रतिष्ठा ।
— रामतीर्थ
- मोक्षपाहुड-६५
- केनोपनिषद्-४८
आत्मज्ञान की प्रतिष्ठा अर्थात् बुनियाद तीन बातों पर होती है--- पदम (इन्द्रियनिग्रह) तथा कर्म - सत्कर्म ।