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अन्याय का धन
१. पिपीलिकाजितं धान्यं, मक्षिकासंचितं मधु । अन्यायोपाजितं द्रव्यं, चिरकालं न तिष्ठति ।।
-सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ १६१ चीटियों का इकट्ठा किया हुआ धान्य, मक्खियों का संचित मधु और
अन्याय से उपार्जित श्रन-ये तीनों चीजें अधिक समय तक नहीं ठहरतीं। २. अन्यायोपार्जितं द्रव्यं, दशवर्षाणि तिष्ठति । प्राप्ते चंकादशेवर्षे, समूल च विनश्यति ॥
-जाणक्यनीसि १५॥६ अन्याय से पैदा किया हुआ धन दश वर्ष रहता है। ग्यारहवें वर्ष समूल
नष्ट हो जाता है। ३. दुर्जनस्याजितं वित्त, 'भुज्यते राजतस्करः ।
-सुभाषितरत्नखण्डमंजूबा दुर्जनों का संचित धन प्रायः राज्य-कर्मचारी ही खाया करते हैं । ४. कीड़ी सच, तीसर खाय (आंधी पीस, कुत्ता खाय)। पापी रो धन पर लं जाय ।
-राजस्थानी कहावत ५. दूध ना दूध मां जाय न पाणी ना पाणी मां जाय । • चोर न पोटले धूल नी धूल।
- गुजराती कहावतें ६. चोरी रो धन मोरी में।
-राजस्थानी कहावत