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ठा भाग : तीसरा कृष्डिक
- १०. दायादाः स्पृहयन्ति तस्करगणा मुष्णन्ति भूमीभुजो, गृह्णन्ति च्छलमाकलय्य हुतभुग् भस्मीकरोति क्षणात् । अम्भः प्लावयति क्षितो विनिहितं यक्षा हस्ते ह दुर्वास्तनया नयन्ति निधन far बह्वधीनं धनम् ॥
- सिन्दूरप्रकरण ७४ जाविजन स्पृहा करते हैं, चोर चुरा लेते हैं, छन द्वारा राजा ले लेते हैं, अग्नि भस्म कर डालती है, पानी बहा देता है, जमीन में लगा कर रखे को यक्ष हर लेते हैं तथा दुराचारी पुत्र इसको नष्ट कर देते हैं। अतः धिक्कार है बहुतों के अधीन रहनेवाले इस मन को ! ११. एक सौतेली मां ने अपने सौतेले पुत्र को विष देकर इसलिए मार डाला कि यह बड़ा होने पर मेरे पुत्रों के हक में हिस्सा लेगा ।
.... उत्तर प्रवेश की घटना
वह उन्हें लेकर स्थान बताया ।
१२. ईरान के एक जमींदार को खेत में दो सिक्के मिले। बाजार में आया। पुलिस अधिकारी के पूछने पर उसने रात को साथियों सहित पुलिस अधिकारी ने वह स्थान खोदा । नीचे एक मकान निकला । अंधेरे में उतरे । सोने की रेत में बड़े मरे थे । ६५ करोड़ का धन था । बात फूटी ! सारे के सारे गिरफ्तार एवं घन
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जब्त !
-अध्ययन के आधार पर
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