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________________ २३ ► १. अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।। उदार और उदारता - पञ्चतन्त्र ५/३० यह अपना है और यह पराया है - ऐसा विचार छोटी समझदा ही करते हैं, उदारचरितों के लिए तो सारी पृथ्वी ही उनका कुटुम्ब है । २. उदारमतवाले विभिन्न धर्मो में अनुदार फर्क देखते हैं । -सोनी कहावत ३. उदार आदमी का वैभव गांव के बीचोंबीच उगे हुए फलों से लदे हुए के समान है । वृक्ष -- तिरुवल्लुवर ४. परगृहे सर्वोऽपि विक्रमादित्यायते ॥ - नीतिवाक्यामृत १११३१ सभी मनुष्य दूसरों के घर में जाकर उसके धनादि को ध्यय कराने के लिए राजा विक्रमादित्य की तरह उदार हो जाते हैं । ५. उदारता अधिक देने में नहीं, किन्तु समझदारी से देने में है । १३८ — फ्रेंकलिन ६. उदारता के बिना मीटी वाणी पीतल की झनझनाहट एवं करताल की खनखनाहट है | - इसाईमंत पाल X
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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