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२२.
कृतघ्न
१. कृतमुपकारं हन्तीति कृतघ्नः ।
किए हुए उपकार की जो घात करता है वह कृतघ्न है । २. कृतमपि महोपकारं, पयइब पीत्वा निरातङ्गः । प्रत्युत हंतु यतते काकोदरसोदरः खलो जयति ।
-सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ५६ दुष्ट वृतघ्न किए हुए महान उपकार को दूध की तरह पीकर सर्प त्रत्
उल्टा दूध पिलानेबाने को ही काटने की चेष्टा करता है। ३. खावे जिकी ही थाली में हंगे। • खावे जिकी ही थाली में कोई। • खावै खसम रो र गीत गावे वीर रा।
-राजस्थानी कहावतें ४. मेरी बिल्ली और मेरे से ही म्याउ !
-हिन्दी कहावत ५. कृतना धनलोभान्धा नोपकारेक्षशक्षमाः ।।
- कथासरित्सागर धन के लोभ में अन्धे वृत्तम व्यक्ति उपकार की दृष्टि से देखने योग्य
नहीं होते। ६. कृतघ्नानां शिवं कुतः !
कयासरित्सागर कृतघ्नों का कल्याण कहाँ ।
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