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________________ १७ परोपकार १. अष्टादशपुराणेपु, व्यासस्य वचनद्वयम् । परोपकारः पुण्याय, पापाय परपीडनम् ।। अठारहपुराणों में व्यासजी के दो ही न चन मुस्य है--दूसरों का उपकार करना पुण्य है और दूसरों को दुःख दना पाप है । २. परहित सरिस धरम नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अघमाई -रामचरितमान ३. संसारे न परोपकार सदृश, पश्यामि पुष्यं सताम् । -क्षेमेन्द्रका मेरो इफिट में सत्पुरुषों के लिए परोपकार जमा पुण्य संसार में दूस कोई नहीं है । ४. परोपकृति-कवल्ये, तोलयित्वा जनार्दनः । गुर्वी मुपकृति मत्वा, ह्मवतारान् दशाऽग्रहीत् ।। -सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ७८ परोपकार और मोक्ष-इन दोनों को तोलने पर उपकार भारी निकला, अतएव घिष्णु भगवान ने परोपकार करने के लिए दस अवतार लिए। ५. नोपकारं बिना प्रीतिः, कथंचित् कस्यचिद् भवेत् । उपयाचित-दानेन, यती देवाः फलप्रदाः॥ -पंचतंत्र २०५२ उपकार किए बिना किसी को किसी के साथ प्रेम नहीं होता । मनौती करने पर ही देवता मनोरथ पूरा करते हैं। १२८
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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