SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 730
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छाटा माग : दूसरा कोष्ठ १०५ गणिजनों का सम्मान गुणों से ही होता है, स्त्री-पुरुष के भेद से या आयु के कारण से नहीं होता। ५. हंसां ने सरवर घणां, देश-विदेश गयाह । में सरजन्न करता, कुसुम पणः भवहि ।। ६. गुणः सर्वज्ञतुल्योऽपि, सीदत्य को निराश्रयः । अनयमति माणिक्य, हमाश्रयमपेक्षते ॥ -चाणक्यनीति १६१० गुणों से युक्त ईश्वर के समान पुरुष भी निराश्रय एवं अकेला व ही पाता है । जैसे-अनमोल माणिक्य भी सोने में जड़े जाने की अपेक्षा रखता है। ७. गुणिजनसंगति(क) जनयति नृणां कि नाभीष्टं गुरणोत्तम संगमः ? -सिदूरप्रकरण ६६ गुणिजनों का सम्पर्क क्या इच्छित काम नहीं करता ? (ख) स्तोकोऽगि गुणिसंसर्गोः, श्रेयसे भूयसे भवेत् । -सूक्तरत्नावली गुणिजनों का थोड़ा-सा संसर्ग भी महान कल्याणकारी हो जाता है।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy