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छाटा माग : दूसरा कोष्ठ
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गणिजनों का सम्मान गुणों से ही होता है, स्त्री-पुरुष के भेद से या आयु
के कारण से नहीं होता। ५. हंसां ने सरवर घणां, देश-विदेश गयाह ।
में सरजन्न करता, कुसुम पणः भवहि ।। ६. गुणः सर्वज्ञतुल्योऽपि, सीदत्य को निराश्रयः । अनयमति माणिक्य, हमाश्रयमपेक्षते ॥
-चाणक्यनीति १६१० गुणों से युक्त ईश्वर के समान पुरुष भी निराश्रय एवं अकेला व ही पाता है । जैसे-अनमोल माणिक्य भी सोने में जड़े जाने की अपेक्षा
रखता है। ७. गुणिजनसंगति(क) जनयति नृणां कि नाभीष्टं गुरणोत्तम संगमः ?
-सिदूरप्रकरण ६६ गुणिजनों का सम्पर्क क्या इच्छित काम नहीं करता ? (ख) स्तोकोऽगि गुणिसंसर्गोः, श्रेयसे भूयसे भवेत् ।
-सूक्तरत्नावली गुणिजनों का थोड़ा-सा संसर्ग भी महान कल्याणकारी हो जाता है।