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गुणी
१. गुणी च गुणरागी च, विरलः सरलोजनः ।
गुणी एवं गुण के प्रेमी विरले ही सरलपुरुष हैं । २. गुगावत: विलस्यले, प्रायेला मन्ति निगुंगा!: मुखिनः । बन्धनमायान्ति का, यथेष्टसंचारिताः काकाः ।।
- मुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ८५ गुणीजन प्रोयः दुःख पाते हैं और निगुण गुम्बी होते हैं । शुक बन्धन को
प्राप्त होते हैं और काक इच्छानुसार धूमते हैं। ३. कौटोयं कृमिजं सुवर्ण मुग्लादिन्दीवरं गोमयान्, पक्रात्तामरसं शशाङ्कमुदधे-र्गापित्तता रोचना । काप्ठादग्नि रहेः 'फगादपि मागाोपि गोरोपतः, प्राकाश्यं स्वगुणोदयेन गुगिनायास्यन्ति कि जन्मना ।।
__ - --पञ्चतन्त्र ११७६ रेशमी वस्त्र कौड़ों से, गोना गत्यर , नील-कमन्न गोबर में, कमन कदम से, नन्द्रमा समुः। से, गोरोचन गाय के पिता से, अग्नि कान्ट गे, मणि साप के फण रा और दोय गाय के रोमां से उत्पन्न होती है। उत्पनि स्थान निम्न कोटि के होन पर भी पूर्वाचन यस्ता जगप्रसिद्ध हो रही है, क्यों न हों ! मणी व्यक्ति अपने गों की उदय में ही
जगत में प्रसिद्धि को प्राप्त होते है, जन्म से नहीं । ४. गुणाः पूजास्थानं गुरिंगषु न च लिङ्ग न च वयः 1
-उत्तररामचरित ४११