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गुणों का नाश एवं प्रकाश १. चहि ठाणेहि संते गणे नासेजा, तं जहा-पोहेगी, पडिनिवेसेणं, अकयन्न याए, मिच्छताभिशिवेसेणं ।
--स्थानांग ४।४१२६४ चार कारणों से जीव विद्यमान गुणों का नाश कर देता है (१) क्रोध से, (२) गुण सहन न होने से, (३) अवलज्ञता से, ) मिथ्याधारणा के
कारण । २. चउहि कोहि संते हो मो ...
मदन परछंदाणुवत्तियं, कज्जहे, कयाधिकइएइ वा।
-स्थानांग ४१४१९८४ चार कारणों से जीव विद्यमान गुणा को प्रकाशित करता है(१) विद्याभ्यास के लिए, (२) दुसरे को अनुमूल बनाने के लिए,
(३) अपना काम सिद्ध करने के लिए, (४) कृतज्ञता प्रकट करने के लिए । ३. इक्षु दण्डास्तिलाः शूराः, कान्ता हेमं च मेदिनी, चन्दनं दधि-ताम्बूले, मर्दन गणवर्धनम् ।
-चाणक्यनीति ६।१३ इक्षुदण्ड , तिल, शूर, स्त्री, हेम. पृथ्वी. चन्दन, दही और तांबूल, मर्दन होन से, इन ६ चीजों के गुप्यों में वृद्धि होती है ।
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