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________________ बक्तत्वकला बीज ५. तीन गुण एवं उसके कार्य भावि--- (क) सत्वं रजस्तम इति, गुणाः प्रकृतिसंभवाः । निबध्नन्ति महाबाहो ! देहे देहिनमव्ययम् ।। -गीता १४५ है अर्जुन ! प्रकृति से उत्पन्न होनेवाले सत्त्व, रज और तम ये तीनों गुण अविनाशी-आत्मा को देह में बांध लेते हैं। (ख) सत्त्वं ज्ञानं तमोप्ज्ञानं, राग-द्वेषो रजःस्मृतम् । एतद्व्याप्तिमदेलेषां, सर्वभूताश्रितं वपुः ।। -मनुस्मृति १२१२६ ययार्थशान होना सस्वगुण का लक्षण है, ज्ञान का न होना तमोगुण का लक्षण है और राग-द्वेष का होना रजोगुण का लक्षण है । सबके शरीरों में इन सब गुणों का स्वरूप व्याप्त रहता है । (ग) सत्त्वं सुखे संजयति, रजः कर्मणि भारत ! ज्ञानमावृत्य तु तमः, प्रमादे संजयत्युत ।। —गीता १४॥ अर्जुन ! सत्वगुण सुख में एवं रजोगुण फर्म में लगाता है, किन्तु तमो गुण ज्ञान को ढंक कर प्रमाद में लगाता है । (घ) देवत्वं सात्त्विका यान्ति, मानुषत्वं च राजसाः । तिर्यकत्वं तामसा नित्य-मित्येषां त्रिविधा गतिः ।। -मनुस्मृति १२१४० सात्त्विक-वृत्तिवाले देवयोनी में, रजोगुणी मनुष्यगति में और तमोगुणी तिर्यञ्चगति में जाते हैं। (3) गुणानेतानतीत्य त्रीन्, देही देहसमुद्भवान् । जन्ममृत्युजरादुःख - विमुक्तोऽमृतमश्नुते ॥ -रीता १४२०
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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