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गुणों का महत्त्व
१. पदं हि सर्वत्र गुणनिधीयते ।
-रघुवंश ३३६२ गुण सर्वत्र अपना प्रभाव जमा लेते हैं। २. गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ।
-किरासा मोय गुणों से आकृष्ट संपदायें, गुणी के पास अपने-आप आ जाती हैं। ३. गुणः खल्वनुरागस्य कारणं, न बलात्कारः ।
-मृच्छकटिक अनुराग का कारण गुण ही होता है, बलात्कार नहीं होता । ४. गुरुतां नयन्ति हि गुरणा न संहतिः ।
किरातार्जुनीय गुण ही मनुष्य को गुरुता देते हैं, समूह नहीं । ५. गुणाः कुर्वन्ति दूतस्त्र, दूरेऽपि वसतां सताम् । केतको गन्धमाघ्राय, स्वयं गच्छन्ति षट्पदाः ॥
प्रसंगरत्नावली सज्जनों के टुर बसने पर भी उनके गुण जीवननिर्माण में दूत का काम करते हैं। केतकी की सुधि पाकर भ्रमर उसके पास स्वयं चले जाते हैं।