SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 720
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घठा भाग : इसरा कोषठक A कि केतकी फलति किं पनसः सुपुष्पः, कि नागापि सह-लपेता !! -सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ १८३ मिसी में कोई एक विशेषता होती है, उसी से वह जगत में प्रसिद्ध हो जाता है। सर्वज्ञ तथा सर्वगुण सम्पन्न कोई नहीं हुआ करता। क्या केवड़े पर फल, पनस (कटहल) पर फूल एवं नागवल्ली-पान की बेल पर फल-फूल आते हैं ? नहीं आते । फिर भी ये एक-एक विशेषगुण से प्रसिद्धि पा रहे हैं। ७. गुणाः सर्वत्र पूज्यते, पितृवंशो निरर्थकः । वसुदेवं परित्यज्य, वासुदेवं नमेज्जनः ।। -प्रसंगरत्नावली सब जगह गुणों की पूजा होती है, पिता के बंधा की नहीं। देखो लोग वसुदेव को छोड़कर वासुदेव को नमस्कार करते हैं। ८. धन से सद्गुगा नहीं मिलते, अपितु सद्गुणों से ही धन व अन्यान्य वस्तुएं मिलती हैं। -कपसियस १. हमारे सद्गुण प्रायः वेष बदले हुए दुर्व्यसन होते हैं। --लाई रोशफूको १०. बहुत से व्यक्ति सद्गुणों की प्रशंसा करते हैं, किन्तु पालन नहीं करते। -मिल्टन ११. सम्मान ही सद्गुण का पुरस्कार है । -सिसरो १२. आकृतिगुणान् कथयति । मनुष्य की आकृति गुणों को प्रकट कर देती है। १३. जे नर रूपे रूबड़ा, तं नर निगुण न होय । कनक तणो कर पीजरो, काग न घहि कोय ।। -राजस्मरनी-बोहा -- - Juic
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy