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________________ धक्तृत्वकला के बोज सिंह मेघ के पीछे गर्जा करता है, किन्तु गीदड़ के पीछे नहीं। ऐसे ही बड़े आदमी छोटों के साग न एलझते ! ४. तृणानि नोन्मूलयति प्रभजनो, मृदुनि नीचेः प्रणतानि सर्वतः । समुच्छ तानेव तरून प्रबाधते, महान महत्वव करोति विक्रमम् ।। -हितोपदेशा २१८८ नीचे की ओर झुके हुए कोमल तृणों को वायु नहीं उग्वाङ्गती, यह तो उच्ख लता से खड़े हुए वृक्षों का ही उन्मूलन करती है, क्योंकि बड़ा-बड़े · के सामने ही अपना पराक्रम दिखाता है। ५. ग्राम्याकर ने सिंह से कहा-मेरे साथ युद्ध कर, अन्यथा में सबसे वह दूंगा कि मैंने सिंह को जीत लिया। सिंह ने उत्तर दिया गच्छ शुकर ! भद्रं ते, वद सिंहो जितो मया। पण्डिता एवं आनन्ति, सिंह-शुकरयोर्वलम् ॥ -दृष्टान्तशतक शूकर ! तेरा कल्याण हो । जा, भले ही कहदे कि मैंने सिंह को जीत लिया । विद्वान्, सिंह और सूअर के बल को जानते हैं। ६. सुर-मिल्टन अंधे थे, कर्ण-ईशा में वंश की कमी थी, अष्टावक, चाणक्य, सुकरात व धनार्डशा में रूप की कमी थी, नेपोलियन और हिटलर में धन एवं प्रतिष्ठा की कमी थी ; किन्तु इन महापुरुषों ने कभी अपने में कमी महसूस नहीं की।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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