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कल्पना
१. 'इतिहास' की अपेक्षा 'कल्पना' का स्थान ऊँचा है।
तुलसीदासजी ने कहा है-'राम' की अपेक्षा 'नाम' बड़ा है।
-गांधी २. कल्पना ज्ञान से भी अधिक महत्वपूर्ण है।
आईस्टीन ३. मानवता अपनी कल्पना से ही शासित होती आ रही है।
-नेपोलियन ४. कल्पना आत्मा का नेत्र है ।
-गुर्टम ५. कवित्व जैसी सुन्दरता न तो अप्सरा में है, न नन्दनवन
के पारिजात में है, न पूणिमा के चन्द्र में है, न प्रातःकाल के दिग्मण्डल में है और न संध्या के अरुणित आकाश में है । कवित्व अंधकार में दीपक है, दरिद्र का धन है, भूख में अन्न है, प्यास में घन है, अंधे की लाठी है, थके की सवारी है, दु:ख में अंर्य है और बिरह में मिल न है । बुरे को भला और भले को बुरा करना इसके लिए मामूली बात है । भाषा-अभाव इसका मुख्य शत्र था। बाद में भाषा प्रकट हुई। उसने अभाच को मारा। पुण्डरीक गणधर ने भाषा से विवाह किया। द्वादशअङ्ग बनाए। इतने में मिथ्या नाम की कन्या प्रकट