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वक्तृत्वकला के बीज
ने वहां प्रकाश-पुज भी देखा था । आज भी अंधेरे-अंधेरे न जाने कौन वहाँ अर्चन करने आता है । अस्तु ! श्री जयाचार्य का स्वर्गवास वि. सं. १९३८ भाद्रवदी १२ को हुआ था एवं अन्त्येष्टि-जुलूस राजकीय सम्मान के साथ अजमेरी गेट से निकाला गया था। उक्त स्मारक पहले चूने का था। अब संगमर्मर का है एवं उसके ऊपर एक छोटी-सी छतरी भी बनादी गई है।