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________________ पांघर्धा भाग : तीसरा कोष्ठक जयपुर गये । वे छोटे-मोटे सभी इंजीनियरों एवं सरमिर्जा से भी मिले. लेकिन उत्तर यही मिला-"जो कुछ तय किया गया है, वही ठीक है।" श्रीचौपड़ाजी ने मुख्यमन्त्री से निवेदन किया-कृपया, एक बार मौका तो देख लीजिये | अति आग्रहवश मुख्यमंत्री ने मौका देखना स्वीकार किया। पता लगते ही पुलिस गश्त लगाने लगी पैमायश करनेवाले फीते लेकर स्मारक के चारों तरफ धूमने लगे थे। इंजीनियर प सीना हो रहे थे । यह था कि उनका नाप ठीक नहीं बैठ रहा था । दूसरे सब निशान ठीवा थे, लेकिन श्री जयगगी का मारक जिसका एक तिहाई हिस्सा सड़क में आने में रेडमार्क से विभूषित था, सड़क से तीन-चार फीट दूर हो गया था। समिर्जा के आते ही चीफ इंजीनियर ने कहा--'साहब ! धरनी पलट गई ।' विस्मित मिर्जा साहब के हाथ जुड़े गये, बूट खुल गये और वे सिर झुकाकर बाले---'सचमुच वह एक महान् पुरुष था। मैं उसे अदब से सलाम करता है। मिस्टर चौपड़ा, थेंक्स ! इस सम्बन्ध में पुराने लोगों का कहना है कि श्री जयाचार्य के संस्कार के बाद वहाँ एक चंदन का वृक्ष प्रकट हुआ, जो तीस-चालीस साल तक रहा । बाग क माली को वहाँ अनेक बार अर्धरात्रि के समय श्वेतवस्त्रधारी दिव्य पुरुष के दर्शन हुये थे । एक बार प्रत्यक्ष होकर मालो से कहा भी गया था---'यहां गंदगी न होने दी जाय ।' कई लोगों
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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