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________________ पांचषां भाग : तीसरा कोष्टक मैं धनवान् है, परिवार वाला हूं. आज मेरे समान दूसरा कौन है ? मैं यज वरू गा. दान दूंगा और पित हो जऊंगा ||१५|| ऐम अज्ञान मे माहित अनेक प्रकार से नित्त में यिभ्रांत मोह-माल में फंसे हुए एवं काम-भोग में तापम् प्राणी अपवित्र नरक में जाते हैं ||१६॥ ४. मित्रद्रोही कृतघ्नश्च, यश्च विश्वासघातकः । ते नरा नरक शान्ति, यावच्चन्द्र-दिवाकरा ।। –पञ्चतन्त्र ११४५४ जो मनुष्य मित्रद्रोही, कृतघ्न एवं विवागशाली होते हैं: वे नरक में जाते है, जब तक सूर्य चन्द्र विद्यमान हैं। ५. कुक्षि-भगा मिष्ठा थे, ने वन रकगामिनः। -गररपुराण जो केवल गेटभगाई की चिता में रहते हैं, वे नरकगामी होते हैं ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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