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________________ १९४ वक्तृत्वकला के बोज नरक के जीव १० प्रकार की वेदना का अनुभव करते हुए विचरते हैं। यथा- सीता, २ , ३ मच, ४ तुती, ५ खाज, ६ परन शता, ७ भग, मोक, ६ जरा-वृद्धावस्था, १० ज्वर-कुष्ट आदि रोग । ४. एगमेगस्स ........नेर झ्यम्स आभावपट्टबगाए सम्योद ही वा सव्व पोग्गले बा आप्तगंलिपक्खिबेज्जा, रमा चेव रणं मे गरइए तितो वा सिया वितण्हे वा सिया । एरिसयारणां गोयमा । णेरड्या सहम्पिवाम पच्चणुदभवगाणा विहरति । -जीवाभिगम, प्रतिपत्ति ३ स. २ नरकाधिकार अगत्कल्पना मे यदि एक नरक निवागो जीव के मन्त्र में मारे ममुद्रों का पानी और दुनिया के सारे स्वाद्य-युद्गल डाल दिए जायें तो भी उसकी भूख-प्यान नहीं बुझतो । हे गौतम ! नरक के जीव इस प्रकार अनन्त भव-प्यास का अनुभव कर रहे हैं। तेणं तत्य गिग में भीया, रािचं तसिया, गिचं छुहिया, गिच्चं कनिम्मा, शिमचं उपप्पया, रिगचर्च वहिया, रिगचं परममसुभम उलमणुबद्ध निरयभवं पचचरणम्भवमारणा विहरति। -जीवाभिगम, प्रतिपत्ति ३ नरकाधिकार उ, २ वे नरक के जीव मदा भवभीत, अस्त, क्षुषित, उद्विगन एवं न्याकुल रहते हैं। व निरन्तर बध को प्राग्न होते हैं वे अतुलअशुभ परमाणुओं से अनुबद्ध होते हैं। इस तरह धोर-पीढ़ा का अनुभव करते हुए विचरते हैं। ६. हा भिदह मिंदह ण दहेति , सई सुशिना परहम्मियाणं । तं नाग्गाओ भयभिन्नसन्ना , कांति कं नाम दिसं वयामों। -सूत्रकृताङ्ग ५।११६
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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