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________________ १३ दुःखरूप संसार १. दुहरूवं दुह फलं, दुहाणुबंधी विडंबणारूव । संसार जारिण उरण, नापी न रई तहि कुणइ ।। यह संसार रोग-शोक आदि दुःखरूप है, नरकारि दुःखरूप फलों का देनेवाला है, बारम्बार दुःखों से सम्बन्ध जोड़नेवाला है एवं विडंबनारूप है-ऐसा जानकर ज्ञानी को इस संसार से राग नहीं करना चाहिए। पास लोए महाभयं। - आचारागार देखो । यह संसार महाभयवाला है । ३. एर्गतदुक्खं जरिए व लोए 1 - तांग १७१११ यह संसार ज्वर के समान एकाम्त दुःखरूप है । ४. मच्चुणाम्भाहओ लोओ, जराए परिवारिओ। -उत्तराभ्ययन १४१३३ यह संसार मृत्यु से पीड़ित है एवं वृद्ध-अवस्था से घिरा हुआ है। ५. मृत्युनाम्याहत्तो लोको, जरया परिवारितः । अहोरात्राः पतन्त्येते, ननु कस्मान्न बुध्यसे ।। महाभारत शान्तिपर्व, १७५९ पुत्र ने कहा-पिताजी ! यह सम्पूर्ण जगत् मृत्यु के द्वारा मारा भा रहा है। बुढ़ापे में इसे चारों ओर से घेर लिया है और ये
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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