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________________ १२ संसार के भेद १. चउविहे संसारे पण्णत्ते, तं जहा दव्वसंसारे, खेत्तसंसारे, कालसंसारे, भावसंसारे । चार प्रकार का संसार कहा है (१) द्रव्य रूप - द्रव्यसंसार (२) चतुर्दशरज्जु -परिमित क्षेत्ररूप क्षेत्रसंसार ( ३ ) दिन-रात, पक्ष-मास यावत् पुद्गलपरावर्तनों तक परिभ्रमण रूप काल संसार (४) कर्मोदय से उत्पन्न होनेवाले विभिन्न राग-द्वेषात्मक विचाररूप भावसंसार । - —स्थानांग ४११।२६१ २. चउबिहे संसारे पण्यते तं जहा - रइयसंसारे जाव देवसंसारे । स्थान ४|११२६४ चार प्रकार का संसार कहा है (१) नैरयिकसंसार, (२) तिर्यञ्च संसार, (३) मनुष्यसंसार, (४) देवसंसार | -- १६१ ३. जीवाणं नवहिं ठाणेहि संसारं वत्तिसु वा वतसि वा वसिति वा तं जहा पुढवीकाइयताए जाव पंचेंदियकाइ यत्ताए । — स्थानांग ९ ३६६६
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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