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________________ सिद्ध भगवान उम्मुक्ककम्मकबया अजरा अमरा असंगा य । ॥२०॥ सिद्ध आत्माए" कम कवच से मुक्त हैं, अजर हैं, अमर हैं और असंग हैं। गिनिजलसध्यनकर". जा-जागरणा-पंधरा तिमुत्मा । अव्वाबाह सोक्शं, अणुहोति सासयं सिद्धाः ॥२१॥ जिन्होंने शारीरिक-मानसिक दुःखों को छेद डाला है, जो जन्मजरा-मरण के बन्धनों से मुक्त हो गये हैं, ऐसे सिद्ध-मुक्त आइमाएँ अव्याबाब शाश्वतमुस्त्रों का अनुभव करते हैं । सव्वमणागयमद्ध, चिट्ठति सुही सुहंता । –औपपातिक सूत्र सिद्धवर्णन, ॥२२॥ सिद्ध आत्माएँ सदाकाल शाश्वत सुखों में स्थिर रहती हैं। एतस्मान्न पुनरावर्तन्ते । -प्रश्नोपनिषद् उस स्थान से मुवत आत्माएं पुनः संसार में नहीं आतीं। ३. तेषु ब्रह्मलोकेषु परापराबतो वसन्ति, तेषां न पुनरावृत्तिः। ___-हदारण्यकोपनिषद् उन ब्रह्मलोकों में मवत आत्माएँ अनन्त काल तक निवास करती हैं। उनका पुनः संसार में आगमन नहीं होता। १५३
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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