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१. न सुखाय सुखं यस्य दुःखं दुःखाय यस्य नो । अन्तर्मुखमतेयस्य स मुक्त इति उच्यते ॥
मुक्त आत्मा
— योगवाशिष्ठ ६।२/१६६।१
जो अन्तर्मुखी बुद्धिवाला मुख को सुख एवं दुःख को दुःख नहीं मानता. वह 'मुक्त' कहलाता है ।
२. नोदेति नास्तमायाति सुखे दुःखे मुखप्रभा । यथाप्राप्तस्थितर्यस्य स जीवन्मुक्त उच्यते ।
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- योगवाशिष्ठ ।१६२१
जो कुछ प्राप्त हो उसी में प्रसन्न रहनेवाला वह व्यक्ति जीवनमुक्त कहलाता है, जिसकी सुखकान्ति सुख में बढ़ती नहीं एवं दुःख में घटती नहीं 1
३. अस्तुति निन्दा नांहि जहिं, कंचन- लोह समान । कहे नानक सुन रे मना । ताहि मुक्त तू जान ||
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