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पांचवां भाग : दुगरा कोष्ठक
है, पांच इन्द्रियों का उल्कार्पण करनेवाली है. आंब-कान-नाक को हीन-दीन बनाने वाली है. वैराग्य को उखाड़ फेवानेवाली है, स्वजन अन्धुओं से दूर करनेवाली है निदेशों में भटकाने वाली है, चारित्र का ध्वंस करने वाली है और पांचों भूतों का दमन करनेवाली है। वह प्राण-संहारिणो यह क्षधा सारे जगत को पीड़ित कर
रही है। ६. अशनाया में पाप्मा मतिः। -ऐतरेय-बाहाण २२२
भूख ही सब पापों की जड़ एवं बुद्धि को नष्ट करनेवाली है । ७. आगी बड़बागि से बड़ी है भूख पेट की । -तुलसी कवितावली ८. भून रांड भंडी. आंख जाय अंडी।
पग थाय पाणी, हैड़े नो आवे बारगी ।। बाजरानो रोटलो, तांदला नी भाजी।
एटला बाना जस तो मन थाय राजी॥ - गुजराती पद्म ६. काम न देखे जात-कुजात, भूख न देखे बासी भात । नींद न देखें टूटी खाट, प्यास न देखे धोबी घाट ।
--हिन्दी कहावत १० ऊंघ न जुबै साथरो, भूख न जुवै भाखरो।
-गुजराती कहावत ११. छुहा जाव सरीरं, ताव अस्थि । –आचारा पूलिका ११२
जब तक शरीर है, तब तक भूब है। १२. बुभुक्षां जयते वस्तु, स स्वंग जयते ध्र वम् ।
–महाभारत-अश्वमेघपर्व EOIR जो भूग्व को जीत लेता है , वह निश्चितरूप में स्वर्ग को जीत है लेता है।