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रात्रिभोजन-निषेध
१. घोरान्धकार रुदाक्ष:, पतन्तो यत्र जन्तवः । नैव भोज्ये निरीक्ष्यन्ते, तत्र भुजीत को निशि ॥
-योगशास्त्र ३४६ रात्रि में घोर अन्धकार के कारण भोजन में गिरते हुए जीव आँखों से दिखाई नहीं देते, उस समय कौन समझदार व्यक्ति
भोजन करेगा! २. वाहुतिर्न च स्नानं, न थाई देवतार्चनम् । दानं वा विहित रात्री, भोजनं तु विशेषतः।।
- योगशास्त्र ३०५६ अन्यमत में वहा है कि गत्रि में होम, स्नान, श्राड देवपूजन या दान करना भो उचित नहीं है, किन्तु भोजन तो विशेषरूप से निषिद्ध है। देवस्नु भुक्तं दुर्वात, मध्याह्न पिभिस्तथा । अपरालं च पितृभिः, सायाह्न दैत्य-दानवः ।। संध्यायो यक्ष-रक्षाभिः, सदा भुक्तं कुलोहह ! सर्ववेला व्यतिताम्य, रात्रौ भुक्तंमभोजनम् ।।
-योगशास्त्र ३।५८-५६ हे युधिष्ठिर दिन के पूर्वभाग में देवों ने, मध्याह्न में ऋपियों ने