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वववृत्त्वकला के बीज
६. भोजनं कुरु दुर्बुद्ध 1 मा शरीरे दयां कुरु !
परान्ने दुर्नभं लोके, शरीराणि पुनः पुनः || अरे मूर्ख ! भोजन करले, शरीर पर दया मत कर, क्योंकि संसार में पराया अन्न दुर्लभ है; शरीर तो फिर-फिर के मिलता ही रहता है। माले मुफ्त दिले वेरहम ।
-उर्दू कहावत मुफ्त री मुर्गी काजीजी ने हलाल। -राजस्थानी कहावत मुफ्त का चन्दन घस बे लाला। तूं भी घस, तेरे बाप को बुलाला । -हिन्दी कहावत