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भोजन की मात्रा १. मात्राशीः स्यात्, आहारमात्रा पुनरग्निबलापेक्षिणी।।
-चरकसंहितासूत्रस्थान ५॥३ मात्रायुक्त आहार करनेवाले बनो। आहार की मात्रा अपने
अग्निबल की अपेक्षा रखती है। २. बायोः संचारणार्थाय, चतुर्थमवशेषयेत् ।
श्वासोच्छ्ावम के लिए अन्न की थैली का चौथा भाग खाली
रखना चाहिए। ३. न भुक्तिपरिमाणे सिद्धान्तोऽस्ति । –नीतिवाय मृत २५।४३
कितना खाना-इस विषय में कोई निश्चय नहीं है । ४. तथा भुञ्जीतः ! यथा सायमन्ये च न विपद्यने बह्निः ।
-नोतिवाक्यामृत २०४२ वैसे रवाना चाहिए, जिससे संध्या या सबेरे जगग्नि न बुझे । ५. भक्षितेनापि किं तेन, येन तृप्तिन जायते ।
उस खाने से क्या लाभ ? जिमसे तृप्ति न हो। ६. यदुवा आत्मसम्मितमन्नं तदति तन्नहिनस्ति, यद् भूयो, हिनस्ति तद्, यत्कनीयो न तवति ।
शतपथकारण ६।६।३।७ आवश्यकतानुसार खाया हुआ अन्न पृष्टि करता है, हानि नहीं।
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