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तृत्वकला के बीज
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( अवसर्पिणी काल में पहले आरे के मनुष्य तीन दिन से दूसरे आरे के दो दिन से तीसरे आरे के एक दिन से, चौथे आरे के दिन में एक बार और पाँचवें आरे के दिन में दो बार भोजन किया करते हैं, किन्तु छठे आरेवाले मनुष्य आहार के विषय में मर्यादाहीन हैं अर्थात् उन्हें भूख बहुत लगती है ।)
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देवों के आहार के विषय में ऐसा माना गया है कि दस हजार वर्ष की आयुवाले देवता एक दिन से, पल्योपम की आयुवाले दो दिन से यावत् नौ दिन से एक सागर की आयुवाले एक हजार वर्ष से एवं तैंतीससागर को आयुवाले देवता तैंतीस हजार वर्ष से, भोजन के इच्छुक होते हैं। (प्रज्ञापनापत्र २८ के बाधार से)