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________________ पांचवां भाग : पहला को हक १ ओजाहार-जन्म के प्रारम्भ में लिया जाने वाला, २ लोभमाहार-स्वचा या रोम भार लिया जानेवाला, ३ प्रक्षिप्तआहारभुख अथवा इन्जेक्वान आदि द्वारा लिया जानेवान।। ५. गरइयारा नउब्धिहे आहारे पण्पात, तं जहा-इंग लोच मे, मुम्मुरोवमे. सीयले, हिनमीयले । तिरिवखजोगिया चविहे आहारे पाते, ते जहाकंकोवमे, बिलोव मे, पाण मंसोवमे पुत्तमसोवमे । मगुस्साणं चउन्विहे आहारे पातो, तं जहा-असणे, पाणे, खादमे, साइम । देवाणं चबिहे बाहारे पत्ते, तंजा-वण्यामते, गंधमते रसमले फासमते। -स्यानांग ४।४३४० नेरपिकों का माहार चार प्रकार का कहा है-- (१) अंगारों के समान-थोड़ी देर तक जन्नानेवाला । (२) मुमुर के समान-अधिक समय तक दाह उत्पन्न करनेवाला। (३) शीतल-मर्दी जगन्न करनेवाला । (४) हिमशीतल-हिम के समान अत्यन्त शीतल । तिर्यञ्चों का भाहार बार प्रकार का कहा है--- (१) कंक के समान-मुभक्ष्म और मुम्बकारी परिणामवाला। (२) बिल के समान-बिल में वसा की सरह (रस का स्वाद दिये बिना) सीधा पेट में जानेवाला। (३) मातङ्गमांस के समान मातङ्गमासवत् घृणा पैदा करनेवाला (४) पुत्रलांस के समान-पुत्रमांसवत् अत्यन्त दुःख से खाया जानेवाला।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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