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वक्तृत्वकला के बीज
-तंतिरोधउपनिषद् ३।७
७. अन्नं न निन्द्यात् । अन्न की निन्दा मत करो ।
5. अन्नेन हींद सर्व गृहीतम् तस्मात् यावन्तो नोऽशनमश्नन्ति - शतपथब्राह्मण ४।६।५।४
तेनः सर्वे गृहोता भवन्ति ।
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अत्र ने सब को पकड़ रखा है अतः जो भी हमारा भोजन करता है, वही हमारा हो जाता है ।
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६. अन्नं हि भूतानां ज्येष्ठम् । तस्मात सर्वोपधमुच्यते । अन्नाद भूतानि जागते जातान्यन वर्धन्ते ।
---तंत्तरीयउपनिषद् ८२
प्राणि जगत में अन्न ही मुख्य है । अन्न को समग्र रोगों की औषध कहा है, ( क्योंकि सब औषधियों का सार अन्न में है) अन्त से ही प्राणी पैदा होते हैं और अन्न से ही बढ़ते हैं ।
१०. अन्नं बहु कुर्वीत तद व्रतम् ।
-तिरोधउपनिषद् ३१२
अन्न अधिकाधिक उपजाना बढ़ाना चाहिए, यह एक व्रत (राष्ट्रीयप्रण ) है
११. सर्वसंग्रहेषु धान्यसंग्रहो महान् यतस्तन्निबन्धनंम् जीवित सकलप्रयासञ्च ।
- नीतिवाक्यामृत ८११
सभी संग्रहों में चान्य का संग्रह बड़ा है, क्योकि जीवन तथा सारे प्रयासों का कारण धान्य ही हैं ।
१२. अत्र मुक्ता र घी
जुक्ता ।
- राजस्थानी कहावत
१३. हमारे बड़े-बूढ़े कहा करते थे कि अनाज महंगा और रुपया सस्ता हो, वह जमाना 'खराब' और अनाज सस्ता और