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________________ १. २. सात कमल रूप चक्र नाम तुलाधारचक्र स्वधिष्ठान चक्र मक चक्र ३. ४. जनानचत्र २. विशुद्धिचक्रे स्थान गुदर निगमूल नाभि हृदय कष्ठ वर्ण अग्निवर्ण सूर्यवर्ण रक्तवर्ण सुवः वि चन्द्रवणं ६. आज्ञाचक्र अवध्य लालवाण ७. ब्रह्मरंध्रेक दशमद्वार स्कटिकवणं पंखुड़ियाँ १२ १६ ܘܕܕ निर्दिष्ट स्थानों में कमल चक्रों की अग्नि आदि वर्णमय एवं उनपर निर्दिष्ट अक्षरों का ध्यान करना चाहिए 1 अक्षर (पंखुड़ियों पर अक्षरों की स्थापना ) नं. शं. पं. सं. ब. शं. मं. पं. रं. लं. डं. दं. णं तं थं दं धं नं पं फं. क. स्वं. गं. घं. ई. चं. लं. जं. भं. नं. टं.. अ. आ. ३. ई. उ. ऊ. ऋ. . . ल. ए. ऐ ओ औ अं अः ह्व क्ष निरंतर मच्चिदानन्द ज्योग स्वरूप कल्पना करके उपरोक्त पंखुड़ियाँ बनानी चाहिए नोट -- १ अथर्ववेद १०:२:३६ आचक्रों का कथन है. वहाँ बिल्ला पुल में एक ललाच अधिक कहा गया है । २ ध्यान सम्बन्धी विशेष जानकारी के लिए लेखक द्वारा लिखी पुस्तक मनोनिग्रह के दो मार्ग देखिए । ७० वक्तृत्वकला के बीज
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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