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________________ पांचवां भाग दूसरा कोष्ठक न रोगों मरणं तस्य न निद्रा न क्षुधा तृषा । न च मुर्च्छा मयेतस्य मुद्रां की बेलि सेवरीमा ६६ गोरक्षशतक ६६-६७ जीभ को उलटकर कपालकुहर-तालु में लगाना और दृष्टि को दोनों भौहों के बीच में स्थापित करना खेचरीमुद्रा होती हैं । जो खेचरी मुद्रा को जानता है, वह न बीमार होता, न मरता, न सोता, न उसे भूख-प्यास लगती और न ही मुर्च्छा उत्पन्न होती । १०. ध्यान के आलम्बन भूत सात कमल-चक्र - + चतु दर्ल स्यादाधारं, स्वाधिष्ठानं च षड्दलम्, नाभौ दशदलं पद्म, सूर्यसंख्यादलं हृदि । कण्ठे स्यात् षोडशदलं, भ्रूमध्ये द्विदलं तथा । सहस्रदलमाख्यातं त्रह्मरन्ध्रे माथे । ध्यान करने के लिए मात्र कमलरूप चक्रों की कल्पना भी की गई है। उनका रहस्य समझने के लिए पृष्ठ ७० के चार्ट को देखें | Xx
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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