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________________ २२ आवश्यक १. समण हा मावएगा य, अवरस काय हवइ जम्हा । अंतो अहोनिसस्स य, तम्हा आवम्सयं नाम । --अनुयोगतान यात्रमणकाधिकार दिन-रात की संधि के समय माधु-श्रावक को यह अवश्य करना होता है । इसलिए इसका नाम आवश्यक है । २. जे भिक्खु कालाइक्कमेण वेलाइक्कमेरा समयाइक्कमेणं आलसायमा आगोवओगे पमत्ते अविहीए अन्नेसि व असड्ढं उप्पायमारगो अन्नयरमावस्सगं पमाइयस....... से एंगोयमा ! महापायच्छित्ती भवेज्जा । -महानिशीयष्य अ. ७ जो भिक्षु आवश्यक-सम्बंधी काल, बेला एवं समय का अतिक्रमण करके आलस्य, उपयोगशून्यता, प्रमाद और अविधि के सेवन द्वारा अन्य माधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाओं में अश्रद्धा उत्पन्न करता हुआ छः आवश्यकों में से किसी एक मावश्यक को भी यदि प्रमादवश नही करता तो हे गौतम ! वह महाप्रायश्चित का भागी होता है। ३. आवस्सयं चरनिह पत्त, तं जहानामावस्सयं, ठवरणावस्सयं, दब्बावस्सयं, भावावस्सयं । -अनुयोगहार आवश्यकाधिकार
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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