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________________ पांचवां भाग पहला कोष्ठक ५. पाप की शुद्धहृदय से मान लेना भी प्रायश्चित्त है । गांधी जी ने कर्जदार से तंग आकर एक बार घर से एक तोला सोना चुराकर कर्ज तो चुका दिया, किंतु चोरी के अपराध से हृदय झुलसने लगा । लज्जावश सामने कहने का साहस न होने से पिता को एक पत्र लिखा एवं भविष्य में ऐसा काम न करने का दृढ़संकल्प किया । पिता ने माफी दे दी । ६. प्रायश्चित्त की तीन सीढ़ियाँ होती हैं- १ आत्मग्लानि २ पाप न करने का निश्चय, ३ आत्मशुद्धि | प्रायश्चित से लाभ ' ४१ सुत्नेव वगाली १. पायच्छित करणेणं पावकम्मविसोहि जायद, निरइयारे यादि भवइ । सम्मं च गं पायच्छिां पडिवज्जमाणे मग्गं चमग्गफलं च विसोहेइ, आयारं च आयारफलं च आराहे। -- उत्तराम्ययम २६।१६ प्रायश्चित्त करने में जीव पापों की विशुद्धि करता है एवं निरतिचार निर्दोष बनता है। सम्यक् प्रायश्चित्त अंगीकार करने से जीव मम्यक्त्व एवं सम्यक्त्व के ज्ञान को निर्मल करता है तथा चारित्र एवं चारित्रफल - मोक्ष की आराधना करता है ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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