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१. तपोनानशनात् परम् ।
अनशन
यदि परं तपस्तद् दुर्वर्षम् तद् दुराधर्षम् ||
- मंत्रायणी आरण्यक १०।६२ अनशन से बढ़कर कोई तप नहीं है, साधारण साधक के लिए यह परम तप दुर्धर्ष है अर्थात् सहन करना बड़ा ही कठिन है । २. आहार पच्चक्खाणं जीवियासंसप्पओगं बोच्छिद ।
- उत्तराध्ययन २६/३५
जीच आशा का व्यवच्छेद छूट जाता है ।
आहार प्रत्याख्यान अर्थात् अनशन से करता है यानी जीवन की लालसा से
३. विषया विनिवर्तन्ते, निराहारस्य देहिनः ।
- गीता २१५६
आहार का त्याग करनेवाले व्यक्ति से शब्दादि इन्द्रियों के विषय निवृत्त हो जाते हैं ।
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४. अणस दुविहे पण्णत्त तं जहा - इत्तरिए य, आवकहिए य इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा -- चउत्थे भत्त
छट्ठे भक्त....... जाव छम्मा सिए भत्त....।
आवकहिए विहे पण ते तं जहा-
पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणं य । - भगवती २५-७
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