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________________ १५ १. तपोनानशनात् परम् । अनशन यदि परं तपस्तद् दुर्वर्षम् तद् दुराधर्षम् || - मंत्रायणी आरण्यक १०।६२ अनशन से बढ़कर कोई तप नहीं है, साधारण साधक के लिए यह परम तप दुर्धर्ष है अर्थात् सहन करना बड़ा ही कठिन है । २. आहार पच्चक्खाणं जीवियासंसप्पओगं बोच्छिद । - उत्तराध्ययन २६/३५ जीच आशा का व्यवच्छेद छूट जाता है । आहार प्रत्याख्यान अर्थात् अनशन से करता है यानी जीवन की लालसा से ३. विषया विनिवर्तन्ते, निराहारस्य देहिनः । - गीता २१५६ आहार का त्याग करनेवाले व्यक्ति से शब्दादि इन्द्रियों के विषय निवृत्त हो जाते हैं । + ४. अणस दुविहे पण्णत्त तं जहा - इत्तरिए य, आवकहिए य इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा -- चउत्थे भत्त छट्ठे भक्त....... जाव छम्मा सिए भत्त....। आवकहिए विहे पण ते तं जहा- पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणं य । - भगवती २५-७ ३६
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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