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________________ वक्तृत्वकला के बीज दीर्घदर्गी विशेषज' तज्ञो लोकान्तः । मलज्जः सदयः गौम्यः, परोपकृतिकर्मठः ।।५।। अन्तराम्पिड्वगं - परिहार - परासरण :। वशीकलंन्द्रियग्रागो. निधर्मीय कलपनं । ।५.६।। -योगशास्त्र १ गृहस्थधर्म को पालन करने का पात्र अर्थात् श्रावक यह होता है, जिसमें निम्नलिखित विशेषताएं हों(१) न्याय-नीति मे घन उपार्जन करवाया हो। (२१ शिष्टपुरुषों के आनार को प्रदर्शमा करनेवाला हो । (३) अपन कुल और शील में समान भिन्न गोषवालों के साथ . विवाह-सम्बन्ध करनेवाला हो । (४) पापों गे डरनेवला हो। (५) प्रमिद्ध देशाचार का पालन करे । (६ : किमी की और विशेषरूप से राजा आदि की निन्दा न करे । (७) ऐसे स्थान पर घर बनाए, जो न एकदम खूला हो और न ____ एकदम गुप्त ही हो । 10) घर में बाहर निकलने के द्वाप अनेक न हो। (E) सदाचारी पुरुषों की संगति करता हो। (१०) माता-पिता की मेवा-भवित करे । (११) रगडे सगड़े और छेड़ नंदा करनेवाली जगह से दूर रहे, अर्थात् चित्त में क्षोभ उत्पन्न करनेवाले स्थान में न रहे । (१२) किसी भी निन्दनीय काम में प्रवृत्ति न करे। (१३) आय के अनुसार ही व्यय करे । (१४) अपनी आर्थिकस्थिति के अनुसार वस्त्र पहने ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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