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वक्तृत्वकला के बीज बाबू-फिरतो तुम्हारी जिन्दगा आठ आने बेकार हो
गई। अच्छा तो तुम्हें गणित आता है ? नाबिक-नहीं। बाबू तब तो तुम्हारी बारह आने जिन्दगी व्यर्थ ही है । संयोग नदी में (पा.१६ 5 और नाव जगाने लगी। नाविक ने पूछा--बाबू जी ! आप तैरना जानते हैं ? बावु-नहीं। नाविक ने कहा-फिर तो आपकी जिन्दगी इस समय सोलह आने पानी में है ! अन्ततः तुफान की चपेट में बाबूजी को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा।