________________
वक्तृत्वकला के बीज
(१) कौकुचिक--(शरीर,स्थान एवं भाषा द्वारा कुचेष्टा करनेवाला) साधु संत्रम का पलिमन्थु होता है । (२) मौखरिकादं का भागी) स मत्यवचन का पलिमन्यु होता है। (३) चक्षुलोलुप- (चलते समय इधर-उधर देखनेत्राला, स्वाध्याय या चिन्तन करनेवाला) साधु ईर्यासमिति का पलिमन्यु होता है। (४) तितिणिक---(यथेष्ट आहारादि में मिलने पर टनटनाट करनेवाला) भाधु एषणासमिति का पलिमन्थु होता है । (५) इच्छालोमिक- (लोभवश वस्त्र-पवादि का संग्रह करनेवाला) निर्लोभितारूप मुक्तिमार्ग का पलिमन्थु होता है। (६) निदानकर्ता-(चक्रवर्ती आदि की ऋद्धि का निदान करनवाला) साधु सम्बग्ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप मुक्तिमार्ग का पलिमन्यु होता है।