________________
चौथा भाग चौथा कोष्ठक
FRE
भोजनादि अच्छा बनाया, घेवर अच्छा पकाया, शाक आदि अच्छा छेवा करेला आदि की कड़वास का अच्छा हरण किया, सत्तु आदि में घी अच्छा भरा, बहुत अच्छा रस निष्पन्न हुआ तथा चावल आदि वत इष्ट है, मुनि ऐसी सावद्यभाषा न बोले ।
११. सुक्काय वा सुविधकोष, अकिज्ज इमं गिव्ह इमं मुळेच, पणीयं नो यह माल अच्छा ( रास्ता ) खरीदा, यह यह बेचने योग्य है। है) और इसको बेच बारे में साधु इस प्रकार न बोले J
किज्जमेव वा ।
वियागरे ॥ ४५ ॥
अच्छा (नफे से) बेचा, इस माल को ले लो (महंगा होनेवाला डालो ( सल्ला हो जायेगा ) वा के
१२. देवाणं मणुयाणं च तिरियाणं न वृग्यहे ।
अमुवा जओ होउ, मावा होउति नो वए ॥ ५० ॥ देवों, मनुष्यों एवं तिर्यञ्वों (पशु-पक्षियों) का आपस में विग्रह होने पर अमुक विजयी हो, अमुक की विजय न हो ऐसा वचन साधु न बोले I
-
१३. बाओ बुद्धं च सीउन्हं, खेमं धायं सिवंति वा । कया हुज्ज एयाणि मा वा होउ ति नो वए ॥ ५१ ॥
१४. तहेब सावज्जणुमोयणी गिरा,
ओहारिणी जा य परोवधाइणी ।
वायु, बरसात, सर्दी-गर्मी, क्षेम ( शत्रु सेना के उपद्रव की शान्ति) सुभिक्ष शिव (मरी रोग आदि की शान्ति ) - ये कब होंगे अर्थात् जल्दी हों तो ठीक अथवा ये सब न हो तो ठीक ऐसा वचन साधु न बोले |