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________________ २५ १. पुरओ जुगमाथाए, पेहमाणो महिं चरे । वज्र्ज्जतो बीयरि गोचरी के नियम -शर्वकालिक ५।१।३ मुनि युगमात्र भूमि को देखता हुआ सचित्तबीज, हरित, दीन्द्रियादि प्राणी, जल और मिट्टी से बचता हुआ चले | २. दवदव्वस न मच्छेज्जा, भासमाणो य गोयरे । हसतो नाभिगच्छेज्जा, कुलं उच्चावयं सया । - दशकालिक ४।१।१४ - दबदबाट करता हुआ, बातें करता हुआ एवं हंसता हुआ न चले । ३. तहेवुच्चावया पाणा, भत्तट्ठाए समागया । तं उज्जयं न गच्छज्जा, जयमेव परक्कमे ॥ - वराकालिक ५|२७ हंस-काक आदि पक्षी दाने चुगरहे हों तो मुनि उनके बीच में से न निकले। उन्हें भय न हो, इस प्रकार यत्नपूर्वक जाये । ४. न चरेज्ज वासे वासंते, महियाए वा पतिए । महावाए व वायन्ते, तिरिच्छि संपाइमेसु वा || REE - दशकालिक ५११२५
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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