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१. पुरओ जुगमाथाए, पेहमाणो महिं चरे ।
वज्र्ज्जतो बीयरि
गोचरी के नियम
-शर्वकालिक ५।१।३
मुनि युगमात्र भूमि को देखता हुआ सचित्तबीज, हरित, दीन्द्रियादि प्राणी, जल और मिट्टी से बचता हुआ चले |
२. दवदव्वस न मच्छेज्जा, भासमाणो य गोयरे । हसतो नाभिगच्छेज्जा, कुलं उच्चावयं सया । - दशकालिक ४।१।१४
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दबदबाट करता हुआ, बातें करता हुआ एवं हंसता हुआ न चले ।
३. तहेवुच्चावया पाणा, भत्तट्ठाए समागया । तं उज्जयं न गच्छज्जा, जयमेव
परक्कमे ॥
- वराकालिक ५|२७
हंस-काक आदि पक्षी दाने चुगरहे हों तो मुनि उनके बीच में से न निकले। उन्हें भय न हो, इस प्रकार यत्नपूर्वक जाये ।
४. न चरेज्ज वासे वासंते, महियाए वा पतिए । महावाए व वायन्ते, तिरिच्छि संपाइमेसु वा ||
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- दशकालिक ५११२५