SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुओं की गोचरी १. भिक्खावित्ती सुहावहा । -उत्तराध्ययन ३५॥१४ भिक्षावृत्ति सुख देनेवाली है। उपवासात् परं भक्ष्यम् । -वशिष्ठस्मृति मर्यादानुसार को हुई भिक्षा से जीवन का निर्वाह करना उपचास से भी बढ़कर है। ३. धीरा हु भिक्खायरियं चरति । -उत्तराध्ययन १४॥३५ धीर पुरुष ही मिशाचर्या का अनुसरण करते हैं । ४. सब्बं से जाइयं होई, णस्थि किंचि अजाइयं । -उसराध्ययन २०२८ साधु की हर एक वस्तु मांगी हुई होती है, बिना मांगी कुछ भी नहीं होती। ५. अहो ! जिणेहि असावज्जा, वित्ति साहण देसिया । –पशवकालिक ५।१६२ आश्चर्य है कि भगवान ने साधुओं को भिक्षावृति पापरहितः कही है। २६१
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy