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________________ चौथा भाग : तीसरा कोष्ठक २१३ इत्युत्पन्नविकल्पजल्पमुखरैः संम्भाष्यमाणो जनंर् न क्रुद्धाः पथि नैव तुष्टमनसो यान्ति स्वयं योगिनः ॥ म हरि-वैराग्यशतक २४ — क्या यह चाण्डाल है अथवा ब्राह्मण है? शुद्ध है या तपस्वी है ? अथवा क्या कोई तत्त्व के विवेक में चतुर योगिराज है ? ऐसे विचित्र प्रकार के विकल्पों द्वारा लोगों से सभाष्यमाण योगिराज राग-द्वेष करते हुए अपने सयममार्ग में विहरण करते रहते हैं । ६. तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मत्तोऽधिकः । कमिभ्यरचाधिको योगी, तस्माद् योगी भवार्जुन ! गीता ६।४६ तपस्वियों से योगी बड़ा है, शास्त्रज्ञानियों से भी योगी बड़ा है और कर्मकाण्डों से भी योगी बड़ा है अत: है अर्जुन ! तू योगी बन । १०. राजा जोगी दोनू ऊँचा, तांबा तुरंबा दोनू सुच्चा । तांबा डूबे तुरंबा तिरे राजा जोगी के पैरों पड़े ॥ राजा ने एक योगी को सम्मान एवं सुविधापूर्वक राजमहल में रखा ? फिर सन्देह हुआ कि मेरे में और इसमें क्या फर्क है। योगी समझकर महलों से निकल चला। राजा-रानी खोजते खोजते योगी के पास आए। वह वृक्ष के नीचे सूखी रोटी खा रहा था। राजा ने कहाचलिए महल में ! योगी ने कहा- पहले तुम यह ग्रामीण भोजन करो। सूखी रोटियां खाते ही राजा-रानी का गला छिल गया एवं उबकाई होने लगी । योगी ने तत्त्व 7
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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