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स. योगः समाधिः, सोऽस्यास्ति इति योगबान् ।
है
-उत्तराध्ययन-बृहद्वति ११।४
* दृष्टिः स्थिरायस्य विनापि दृश्यं, वायुः स्थिरो यस्य विना
तु । मनः स्थिरं मत्यं विनावलम्ब स एवं योगी स गुरुः रा सेव्यः ।
योगी
योग का अर्थ समाधि है। जिराकी आत्मा में समाधि हो, वह योगवान योगी है।
-गोरक्षशतक २०
से
किये बिना
दृश्य पदार्थी के बिना जिराकी दृष्टि जिसका भवन स्थिर एवं सिमी नो अदमंचन के बिना जिसका मन स्थिर है, यही भोगी है, यही है और उसी की मैया करती नाहिए ।
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा, कूटस्थो विजितेन्द्रियः । युक्त इत्युच्यते योगा, समलोष्टारमकाञ्चनः ॥
- mate $15
जिसकी आत्मा ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, जो कूटस्थ है। विजितेन्द्रिय है एवं मिट्टी, पत्थर तथा सुत्र को समान समझता है, वह योगी युक्त ( भगवत्प्राप्तिकाला ) कहा जाता है ।
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