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योगशब्द का दूसरे प्रकार में प्रयोग
5. कायवाङ - मनोव्यापारो योगः ।
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वक्तृत्वकला के बीज
- जैन सिद्धान्तदीपिका ४१२६
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शरीर, वचन एवं मन के व्यापार को योग कहते हैं ।
६. जोगसच्चेणं जोगं विसोहेइ ।
-उत्तराध्ययन २६-५२
योग - सत्य से जीव योगों की विशुद्धि करता है अर्थात् मनवचन-काय की प्रवृत्ति को शुद्ध बनाता है ।
१०. जोगं च समणधम्मंग जजे अनलसो हु ।
दशर्वकालिक ८|४३
आलस्य को छोड़कर योगों को सदा श्रमणधर्म में जोड़ना चाहिए ।