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________________ २७ १. मोक्षोपायो योगो ज्ञान चरणारुकः । योग - महिमा 1 योग ज्ञान दर्शन- चारित्रमय है एवं मोक्ष का उपाय है । २. यांगः कल्पतरुः श्रेष्ठो, योगश्चिन्तामणिः परः । योगः प्रधानं धर्माणां योग: सिद्ध: स्वयं ग्रहः ॥ - योगबिन्दु ३७ यांग श्रेष्ट कल्पतरु है, योग दूसरा चिन्तामणि है। योग सभी धर्मो में उत्कृष्ट है एवं योग्य स्वयं सिद्धि-मुक्ति को ग्रहण करनेवाला है । ३. आत्मज्ञानेन मुक्तिः स्यात्, तच्चघोगाहते नहि । - अभिधानचिन्तामणि १४७७ स्कन्दपुराण आत्मा का ज्ञान होने से ही मुक्ति होती है, किन्तु वह ज्ञान योग के बिना नहीं होता । ४. स एवाहं स एवाह - मिति भावयतो मुहुः । योगः स्यात्कोऽपि निःशब्दः शुद्धः स्वात्मनि यो लयः ॥ २०८ मैं वही हूं । मैं वही है ! ऐसी भावना करते करते जो शुद्ध योग- शब्द रहित हो जाता है, उसे अपनी आत्मा में लय होना कहते हैं । -
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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