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सभ्यता
१. सभ्यता चारित्र का वह रूप है, जो मनुष्य को कर्तव्य का मार्ग दिखलाता है।
-गांधी
२. नोच्चेहसेत्, न शब्दबन्तं मारुतं मुञ्चेत्, नाऽनावृत
मुखो जृम्भा क्षवथु हास्य वा प्रवर्तयेत्, न नासिका कुष्णीयात्, न दन्तान् विघट्टयेत्, न नखान वादयेत् ।।
__ -चरकसंहिता सूत्रस्थान १६ सभ्य मनुष्य को चाहिए कि वह अधिक जोर से न हंसे, शब्दयुक्त अपानवायु का त्याग न करे, मुख को बिना ठेके जंभाई, छीक व खांसी को न निकाले, अंगुली से नासिका को न कुरेदे, दांतों को न किटकिटाने एवं नखों को न बजाये ।
(अत्रिऋषि द्वारा अग्निवेश को उपदेश ३. नान्नमद्यादेकबासा, न नग्नः स्नानमाचरेत् । न मूत्र' पथि कुर्वीत, न भस्मनि न गोनजे ।।
-मनुस्मृति ४१४५ एक वस्त्र से भोजन, नान होकर नहाना, मार्ग में, राख के ढेर में तथा गोब्रज में भूत्र करना—मे काम निषिद्ध हैं।