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१६.
वक्तृत्वकला के बीज के साथ रक्षा करता है, वैसे ही अपने शील की अविच्छिन्नरूप से रक्षा करते हुए उसके प्रति सदा गौरव की भावना रखनी
चाहिए । ११. न संतसंति मरणते, सीलवंता बहुस्सुया ।
-उत्तराध्ययन ५।२६ जानी और सदाचारी आत्माएं मरणकाल में भी त्रस्त अर्थात्
भयाक्रान्त नहीं होती। १२. सील-गुणवज्जिदाणं, णिरत्थयं माणुसं जम्म ।
—शीलपाड १५ शीलगुण से रहित व्यक्ति का मनुष्यजन्म पाना निरर्थक
१३. सम्पन्नसीला, भिक्खवे विहरथ ।
-मज्झिमनिकाय ११६१ भिक्षुओ ! शील सम्पन्न होकर विचरो !